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बलिया का गौरव: आचार्य परशुराम चतुर्वेदी के सुपौत्र प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी बने बीएचयू के कुलपति

 




बलिया। साहित्य, शिक्षा और संस्कृति की धरती बलिया एक बार फिर गर्व से गौरवान्वित हो उठी है। महान साहित्यकार, हिंदी जगत के महामनीषी और लोक-साहित्य के अमूल्य संरक्षक आचार्य पंडित परशुराम चतुर्वेदी के सुपौत्र प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी को देश के प्रतिष्ठित काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) का कुलपति नियुक्त किया गया है।


यह नियुक्ति केवल बलिया ही नहीं, बल्कि संपूर्ण पूर्वांचल के लिए सम्मान और गर्व का विषय है। बलिया की मिट्टी से निकले एक और रत्न ने देश के उच्च शिक्षा जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।

आचार्य परशुराम चतुर्वेदी: साहित्य का गौरव


आचार्य पंडित परशुराम चतुर्वेदी का नाम हिंदी साहित्य के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। वे लोक-साहित्य, इतिहास, कविता और आलोचना के क्षेत्र में अपने अद्वितीय योगदान के लिए जाने जाते हैं। उन्हें ‘लोक साहित्य के पितामह’ और ‘पूर्वांचल के भारतेन्दु’ के रूप में सम्मानित किया जाता है।


उन्होंने न केवल साहित्य की सेवा की, बल्कि शिक्षा को समाज परिवर्तन का माध्यम मानते हुए कई पीढ़ियों को प्रेरित किया। बलिया के जवहीं दीयर गांव से निकलकर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी साहित्य को नई पहचान दिलाई।

प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी: शिक्षा जगत का उज्ज्वल सितारा


आचार्य परशुराम चतुर्वेदी के संस्कारों और पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, उनके सुपौत्र प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने भी शिक्षा के क्षेत्र में एक लंबा और गौरवशाली सफर तय किया है।


उनका जन्म एक प्रतिष्ठित, शिक्षित और सांस्कृतिक मूल्यों से ओत-प्रोत परिवार में हुआ। प्रारंभ से ही उनकी रुचि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में रही। उन्होंने इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में उच्च शिक्षा प्राप्त की और आगे चलकर अपने शोध कार्यों और अकादमिक योगदान के माध्यम से देश-विदेश में ख्याति अर्जित की।


शैक्षणिक और प्रशासनिक उपलब्धियाँ


प्रो. चतुर्वेदी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रुड़की के निदेशक पद पर कार्य कर चुके हैं। उनके नेतृत्व में IIT रुड़की ने शोध, नवाचार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की।


उन्होंने IIT कानपुर और देश के अन्य प्रमुख तकनीकी संस्थानों में भी महत्वपूर्ण शैक्षणिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ निभाई हैं। उनकी विशेषज्ञता सूचना प्रौद्योगिकी, उच्च शिक्षा सुधार, शोध नीति निर्माण और अंतरराष्ट्रीय शैक्षिक साझेदारी में रही है।


उनकी अगुवाई में कई संस्थानों ने


नए शोध केंद्रों की स्थापना


वैश्विक रैंकिंग में सुधार


उद्योग-शिक्षा सहयोग


स्टार्टअप और नवाचार को प्रोत्साहन

जैसी उपलब्धियाँ हासिल कीं।



शिक्षा क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सम्मानित किया गया है।


BHU: देश का गौरव, जिम्मेदारी का पद


काशी हिंदू विश्वविद्यालय, जिसकी स्थापना महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1916 में की थी, भारत ही नहीं बल्कि एशिया के सबसे प्रतिष्ठित आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक है। यहां 30,000 से अधिक छात्र विभिन्न संकायों में शिक्षा प्राप्त करते हैं।


BHU का कुलपति बनना किसी भी शिक्षाविद के लिए सर्वोच्च सम्मान है। यह पद केवल प्रशासनिक अधिकार नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय के भविष्य की दिशा तय करने की जिम्मेदारी भी देता है।

बलिया और पूर्वांचल में हर्ष की लहर


प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी की इस नियुक्ति से बलिया और पूर्वांचल में खुशी की लहर दौड़ गई है। गांव से लेकर शहर तक, लोगों ने मिठाइयां बांटकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।


स्थानीय साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों ने कहा कि यह उपलब्धि बलिया की बौद्धिक परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर को नई पहचान देगी। कई लोगों का मानना है कि प्रो. चतुर्वेदी का सरल, विनम्र और दूरदर्शी व्यक्तित्व BHU को नई दिशा देने में मील का पत्थर साबित होगा।

प्रेरणा का स्रोत


यह उपलब्धि बलिया के युवाओं के लिए प्रेरणा है कि लगन, परिश्रम और ईमानदारी से काम करते हुए विश्व के किसी भी मंच पर अपनी पहचान बनाई जा सकती है। प्रो. चतुर्वेदी की कहानी यह साबित करती है कि छोटे कस्बे और गांव से निकलकर भी शिक्षा और प्रतिभा के बल पर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचना संभव है।

लोगों की अपेक्षाएँ


शिक्षा जगत को उम्मीद है कि प्रो. चतुर्वेदी के नेतृत्व में BHU न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि वैश्विक मंच पर भी अपनी स्थिति और मजबूत करेगा। उनसे अपेक्षा है कि वे शोध, नवाचार और छात्र कल्याण को प्राथमिकता देंगे और BHU को विश्व के शीर्ष विश्वविद्यालयों की सूची में लाने की दिशा में काम करेंगे।

निष्कर्ष


प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी की BHU के कुलपति के रूप में नियुक्ति बलिया के लिए ऐतिहासिक क्षण है। यह आचार्य परशुराम चतुर्वेदी की विद्वता और मूल्यों की विरासत का जीता-जागता प्रमाण है।


आज संपूर्ण बलिया, पूर्वांचल और हिंदी भाषी समाज इस बात पर गर्व कर रहा है कि उनकी धरती का एक सपूत देश के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में से एक का नेतृत्व करेगा।

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